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मन की भाषा जो पढ़ लेता

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गीत(16/14)
मन की भाषा जो पढ़ लेता,
वह प्रेमी कहलाता है।
पढ़कर शीघ्र विकलता मन की,
प्रेमी मन बहलाता है।।

आसमान से ऊँचे अरमाँ,
वायु-वेग से फुर्तीला।
महि सम रहकर अति सहिष्णु जग,
जीवन जीता जोशीला।
साधक-त्यागी जैसा प्रेमी,
सबके मन को भाता है।।
    मन की भाषा जो पढ़ लेता,
    वह प्रेमी कहलाता है।।

मार मौसमी सहता रहता,
नहीं किसी से पीर कहे।
उलट-पुलट यह दुनिया करती,
किंतु सदा वह थीर रहे।
जग से मिले गरल में प्रेमी,
रस अमृत सा पाता है।।
       मन की भाषा जो पढ़ लेता,
        वह प्रेमी कहलाता है।।

कपट-दंभ,छल-छद्म जगत के,
उसको प्रति-पल छलते हैं।
मान प्रेम को मात्र वासना,
उससे रह-रह जलते हैं।
प्रेमी का मन सात्विक होता,
जग को नहीं सुहाता है।।
       मन की भाषा जो पढ़ लेता,
        वह प्रेमी कहलाता है।।

सरिता की धारा से पूछो,
प्रेम-भाव जो दर्शाती।
सतत प्रवाहित पवन-वेग सी,
मिले सिंधु से हर्षाती।
प्रेमी-मन की प्यास चातकी,
स्वाती-नीर बुझाता है।।
      मन की भाषा जो पढ़ लेता,
       वह प्रेमी कहलाता है।।
                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

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2 Comments

Sachin dev

06-Jan-2023 05:58 PM

Well done

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Gunjan Kamal

05-Jan-2023 08:35 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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